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कविता

सियासत छाई

ओमप्रकाश तिवारी


लिट्टी-चोखा, दूध मलाई,
सब पर आज सियासत छाई।

आलू फिर इस बार खड़े हैं,
पहले भी छह बार लड़े हैं;
संगी-साथी आगे-पीछे,
जिन पर बहु आरोप जड़े हैं।
अभी-अभी पर्चा भर लौटी
दाल ले रही है अंगड़ाई।

थाली के बैंगन पर अबकी,
टिकी निगाहें दिखतीं सबकी;
जब भिंडी की जात साथ है,
जीत प्याज की समझो पक्की।
जिस सूरन की पूछ नहीं थी,
उसे कहें सब भाई-भाई।

टिंडा चढ़ा चुनावी रथ पर,
बढ़ता जाय विजय के पथ पर;
कद्दू के दल वाला झंडा,
लहराता है सबकी छत पर
ऐंठी बैठी अरवी बोले,
दो हिसाब सब पाई-पाई।
 


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